राजमाता जीजाबाई छत्रपति शिवाजी की माता ही नहीं बल्कि उनकी मित्र, गुरु और प्रेरणास्रोत भी थीं। उसने उसे बड़े मूल्यों के साथ पाला, और वह हिंदू समाज का रक्षक और अंततः प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज बन गया।

रानी दुर्गावती ने स्वयं गढ़मंडला का शासन संभाला और मुस्लिम शासकों के  खिलाफ कड़ा संघर्ष किया। वह अकबर के जुल्म के आगे झुकने से इंकार करते हुए  1564 में बलिदान दिया। वह भारत की महान वीरांगनाओं में शामिल हैं।

रानी रूपमती - स्त्री-लोलुप सूबेदार बाजबहादुर के खिलाफ लड़ाई में जीत  हासिल करने के बाद, उनकी सेना को पूरी तरह से हराकर वह 16 वर्षों तक राज  संभालती रहीं।

रानी द्रौपदीबाई ने रामचंद्र बापूजी को अपना दीवान नियुक्त कर उनका समर्थन  पाया। दोनों ने 1857 की क्रांति में ब्रिटानियों का विरोध किया और  क्रांतिकारियों को सहायता दी।

राजकुमारी रत्नावती -  मुगल सेना ने किले को घेर लिया। इन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है। पर रानी के दत कर समाना किया|  मुगलों ने हार मन ली | इन्होंने खुद भूखी रहकर हम लोगों का पालन किया है

रानी कर्मवती चित्तौड़ की रानी थी, जिन्हें वीरांगना के रूप में भी जाना जाता है। | जिसे सुल्तान बहादुर शाह ने आक्रमण किया था। वह अपनी सेना के साथ लड़कर जीत गई थी।

महारानी तपस्विनी - 'माताजी' के नाम से जानी जाती थी। 1857 की क्रांति में  वे अपनी चाची के साथ सक्रिय भूमिका निभाते हुए तिरुचिरापल्ली जेल में रखी  गई।

गुन्दुमल की बेटी सर कटवाने को तैयार, मीर कासिम की पत्नी नहीं बनी। सिंध  के राजा दाहिर और उनके परिवार ने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के  लिए अपनी जान दी।

महारानी पद्मिनी की सुंदरता ने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी को मोहित  कर लिया। राजा रत्नसिंह को मार गिराया गया, जिसके बाद रानी पद्मिनी ने  राजपूत वीरांगनाओं के साथ जौहर की अग्नि में आत्मदाह कर ली।

रानी सारंधा एक बुंदेला राजकुमारी थी | जो अपने पति और खुद को भूमि के सम्मान के लिए बलिदान करती थी। वह भारत की महान वीरांगनाओं में से एक थी।